जीवन व्यर्थ क्यों मालूम होता है | Why does life seem meaningless

Vimla Sharma
4 min readMay 14, 2023
सीखो जीवन को अर्थ देना। उठाओ तूलिका और जीवन में रंग भरो। Learn to give meaning to life. Pick up the paintbrush and paint your life.

जीवन क्या है? वृक्षों से पूछो। इससे तो बेहतर हो फूलों से पूछो।

इससे तो बेहतर हो पहाड़ों, चांद-तारों से पूछो। कुछ चमक तो है, कुछ रौनक तो है, कुछ गंध तो है, कुछ गीत तो है! शायद वहां से तुम्हें ज्यादा ठीक-ठीक संदेश मिल जाएगा परमात्मा का। परमात्मा वहां अभी ज्यादा जीवित है। परमात्मा सब जगह है? मैंने कहा, सब जगह है। सब जगह परमात्मा है, परमात्मा को पाने के लिए तो बिल्कुल मिट जाना होता है। सीखो जीवन को अर्थ देना। उठाओ तूलिका और जीवन में रंग भरो।

जीवन कोई रेडीमेड कपड़े नहीं है, कोई हौजरी की दुकान नहीं है, कि गए और तैयार कपड़े मिल गए। जिंदगी से कपड़े बनाने पड़ते हैं। फिर जो बनाओगे वही पहनना पड़ेगा, वही ओढ़ना पड़ेगा। और कोई दूसरा तुम्हारी जिंदगी में कुछ भी नहीं कर सकता। कोई दूसरा तुम्हारे कपड़े नहीं बना सकता। जिंदगी के मामले में तो अपने कपड़े खुद ही बनाने होते हैं।

जीवन व्यर्थ है, ऐसा मत कहो। ऐसा कहो कि मेरे जीने के ढंग में क्या कहीं कोई भूल थी? क्या कहीं कोई भूल है कि मेरा जीवन व्यर्थ हुआ जा रहा है?

बुद्ध का जीवन तो व्यर्थ नहीं। जीसस का जीवन तो व्यर्थ नहीं। मोहम्मद का जीवन तो व्यर्थ नहीं। कैसा अर्थ खिला! कैसे फूल! कैसी सुवास उड़ी! कैसे गीत जगे! कैसी मृदंग बजी! लेकिन कुछ लोग हैं कि जिनके जीवन में सिर्फ दुर्गंध है। और मजा ऐसा है कि जो तुम्हारे जीवन में दुर्गंध बन रही है वही सुगंध बन सकती है-जरा सी कला, जीने की कला!

मैं धर्म को जीने की कला कहता हूं। धर्म कोई पूजा-पाठ नहीं है। धर्म का मंदिर और मस्जिद से कुछ लेना-देना नहीं है। धर्म तो है जीवन की कला। जीवन को ऐसे जीया जा सकता है-ऐसे कलात्मक ढंग से, ऐसे प्रसादपूर्ण ढंग से-कि तुम्हारे जीवन में हजार पंखुरियों वाला कमल खिले, कि तुम्हारे जीवन में समाधि लगे, कि तुम्हारे जीवन में भी ऐसे गीत उठें जैसे कोयल के, कि तुम्हारे भीतर भी हृदय में ऐसी-ऐसी भाव-भंगिमाएं जगें, जो भाव-भंगिमाएं प्रकट हो जाएं तो उपनिषद बनते हैं, जो भाव-भंगिमाएं अगर प्रकट हो जाएं तो मीरा का नृत्य पैदा होता है, चैतन्य के भजन बनते हैं! इसी पृथ्वी पर, इसी देह में, ऐसी ही हाड़-मांस-मज्जा के लोग सार्थक जीवन जी गए।

जीवन व्यर्थ क्यों मालूम होता है?

ज़रा आंख खोल कर देखो, कहीं अंधेरे में आंख बंद किए बबूल को तो नहीं पकड़ लिया है? और सोचते हो इसमें गुलाब के फूल लगेंगे! फिर कांटे छिदें तो कसूर किसका है? कहीं बबूल की छाया में तो नहीं बैठे हो? बबूल की कहीं कोई छाया होती है? फिर धूप घनी होगी, लहू पसीना बन कर बहेगा, तो यह मत कहना कि दुनिया की गलती है। यहीं वट-वृक्ष भी थे, जिनके नीचे बहुत छाया थी। मगर तुमने खोजे नहीं। यहीं झरने भी थे, जहां प्यास तृप्त होती। आत्मा की प्यास तृप्त होती! मगर तुम मरुस्थलों में भटकते रहे। मरुस्थलों में भी छिपे हैं मरूद्यान, जरा खोजो! तुम्हारे भीतर ही सारी खोज होनी है।

जो व्यक्ति ध्यान-रहित जीएगा उसका जीवन व्यर्थ होगा, असार होगा। जो व्यक्ति ध्यान-सहित जीएगा उसका जीवन सार्थक होगा। जीवन न तो व्यर्थ होता न सार्थक, ध्यान पर सब निर्भर है। ध्यान है राज। ध्यान है कुंजी।

मूर्तिकार मूर्ति गढ़ता है, इंच-इंच तोड़ता है पत्थर को, संभाल कर, संभल कर। बड़ी मुश्किल से मूर्ति निर्मित हो पाती है। और जितनी महान कृति निर्मित करनी हो उतनी मुश्किल हो जाती है। जीवन को निखारने की कला सीखो। कोई गीता पढ़ रहा है, कोई रामायण रट रहा है, कोई कुरान कंठस्थ किए बैठा है-और सोच रहा है जीवन में अर्थ नहीं मिल रहा है! अरे, कुरान कंठस्थ करने से नहीं कुछ होगा जब परमात्मा से गर्भित होओगे, जब तुम्हारे गर्भ में परमात्मा पैदा होगा, जब तुम परमात्मा को अपने गर्भ में ढोओगे वर्षों तक, तब तुम्हारे भीतर कुरान पैदा होगा, तब तुम्हारे शब्दों में आयतें उतरेंगी। तब तुम्हारा शब्द-शब्द सुगंधा लाएगा। तब तुम बन जाओगे सेतु पृथ्वी और आकाश के बीच।

जर्मनी का प्रसिद्ध कवि हेन, जंगल में भटक गया एक बार, तीन दिन तक भूखा रहना पड़ा। फिर पूर्णिमा की रात को जब चांद निकला, उसने ऊपर देखा, बहुत हैरान हुआ। जिंदगी भर उसने चांद पर कविताएं लिखी थीं। उस दिन बहुत चौंका, क्योंकि सारी कविताएं गलत हो गईं। अब तक वह चांद में देखता था सुंदर-स्त्रियों के चेहरे, रम्य चेहरे, प्रेयसियों के चेहरे। आज चांद में क्या दिखाई पड़ा? एक रोटी आकाश में तैर रही है! उसने आंखें मूंद कर फिर से देखा कि मुझे कुछ भूल तो नहीं हो रही, रोटी! मगर भूखे आदमी को अगर तीन दिन के बाद चांद में डबल रोटी न दिखाई पड़े तो क्या दिखाई पड़े?

जीवन क्या है? वृक्षों से पूछो। इससे तो बेहतर हो फूलों से पूछो।

इससे तो बेहतर हो पहाड़ों, चांद-तारों से पूछो। कुछ चमक तो है, कुछ रौनक तो है, कुछ गंध तो है, कुछ गीत तो है! शायद वहां से तुम्हें ज्यादा ठीक-ठीक संदेश मिल जाएगा परमात्मा का। परमात्मा वहां अभी ज्यादा जीवित है।

परमात्मा सब जगह है? मैंने कहा, सब जगह है।

सब जगह परमात्मा है, परमात्मा को पाने के लिए तो बिल्कुल मिट जाना होता है। सीखो जीवन को अर्थ देना। जीवन को, उठाओ तूलिका और रंगो। इसीलिए मेरा यह जो बुद्ध-क्षेत्र है, यहां गीत है, गायन है, नृत्य है, मस्ती है। क्योंकि हम यहां जीवन की कला, जीवन में चार चांद जोड़ने की चेष्टा कर रहे हैं। यहां धर्म की एक नयी अवधाारणा हो रही है, एक नया अवतरण हो रहा है। धर्म-जो उत्सवपूर्ण हो!

मेरे संन्यासी को मैं नाचता-गाता हुआ व्यक्तित्व देना चाहता हूं, उदास नहीं, उदासीन नहीं उल्लासपूर्ण] उमंगपूर्ण] उत्साहपूर्ण] जीवंत! हंसते हुए चलना है उसके द्वार की तरफ, रोते हुए क्या! और अगर कभी रोओभी तो तुम्हारे आंसू हंसते हुए होने चाहिए, तो ही स्वीकार हो सकेंगे।

-ओशो, उत्सव

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